सोमवार, 15 मई 2017

वाया सहारनपुर

सहारनपुर की घटना केवल एक घटना नहीं है, जो बाऊ साहेब और दलितो की लड़ाई से जुड़ी है ; एक पूरा मनोविज्ञान है इसके पीछे । इसे केवल दो जातियों या सवर्ण-अवर्ण या बड़ी जातियों के बर्चस्व की पुनरास्थापना की कोशिश तक सीमित करके देखना उसे एकरेखीय ढंग से देखना है । इन सारी बातों को स्वीकार करते हुए भी उसमें कुछ और बातें जोड़कर देखनी चाहिए; जैसे- आरक्षण को सवर्णविरोधी के रूप में प्रचारित करना, रोजगार के नए क्षेत्रों के विकास और नए पदों के सृजन की उपेक्षा और बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि, दलितवादी, पिछड़ावादी और आरक्षणवादी बुद्धिजीवियों का लगातार तथा कथित सवर्ण जातियों को कोसना, असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करना और सरकार को कोसने के बजाय इन जातियों को कोसना आदि । इन सबका मिला-जुला प्रभाव सामाजिक वैमनस्य का जो बीज बोरहा था, उसकी लहलहाती फसल है सहरनपुर । जो बौद्धिक लोग सहारनपुर को लेकर आज चिंतित हैं (अबौद्धिक होने के बावजूद मैं भी इसमें शामिल हूं ) उन्हें तभी इसके बारे में चिंता करनी चाहिए थी, जब कि वे सामाजिक ताने-बाने को तार-तार करने में जोर-शोर से लगे थे; बजाय सबके समान और समेकित विकास पर जोर देने के, जातिवादी वोट बैंकों में नागरिकों के तब्दील करनेवाली राजनीतिक पार्टियों का विरोध करने के, सरकार पर रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करने के लिए दबाव डालने के, जातिगत मतभेदों को बढ़ाने से रोकने और उसे हवा देने वाली ताकतों का विरोध करने के तथा आरक्षण के संबंध में भ्रांतियाँ दूर करने के लिए व्यापक प्रयास करने के । ये तमाम पहलू हैं, जो भारतीय समाज को क्रमशः ज्वालामुखी के मुख-विवर की ओर धकेलते रहे। तब हम सब तमाशाबीन रहे और एकदूसरे खिलाफ खड़े होकर तालियाँ बजाते रहे । संभालना अब भी जरूरी है, अन्यथा समय जवाब नहीं माँगेगा फैसले सुनाएगा और हम सब कटघरे में खड़े या तो बेबस फैसला सुनेंगे या चुपचाप अपने पापों की फंदे पर लटक जाएंगे । समय पंडी जी, बाऊ साहब, यादव जी, मौर्या जी, पटेल जी, या किसी दलित और जनजाति के लिए पालागन करने या आरक्षण देने नहीं आएगा , वह जाति-गोत्र के आधार पर फंदे या कठघरे नहीं तैयार करेगा, वह सबको एक साथ लपेटेगा । तब कोई न कोई तारनहार रहेगा न तमाशाबीन । सब मारे जाएंगे । सहारनपुर उस आपदा की पूर्वसूचना भर है । इसलिए बेहतर हो, सरकार पर समेकित विकास और रोजगार सृजन के लिए सामूहिक प्रयास किए जाएँ, बजाय सिरफुटौवल और आपसी गाली-गलौज में ऊर्जा जाया करने के ।

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