'पंथ-निरपेक्षता' भारतीय संविधान की मूल आत्मा(प्रस्तावना का हिस्सा) है। यह भारतीय मनोरचना का स्वाभाविक तत्व है, इसका विकास भारतीय संस्कृति (संस्कृति भी गढ़ा हुआ नया शब्द है; भारतीय संदर्भ में इसके लिए धर्म ही सटीक शब्द है) के साथ-साथ सहज रूप में हुआ। अतः इसका विरोध भारतीयता का विरोध है। 'धर्म-निरपेक्षता' और 'सांप्रायिकता' दोनों नयी अवधारणाएँ हैं और दोनों साथ-साथ फलती-फूलती रही हैं। एक दूसरे के बिना दोनों अधूरी हैं। भारत में सांप्रदायिकता के अस्तित्व का सबसे बड़ा कारण है, 'धर्म' को संस्कृति से 'रिप्लेस' कर 'संप्रदाय' से उसका तुक मिला देना। यह घाल-मेल ब्रिटिश औपनिवेशिक और पौर्वात्यवादी इतिहासकारों ने बड़ी चालाकी से किया और हमारा बौद्धिक समाज उसे लगातार ढोये जा रहा है। यही कारण है कि एक आम भारतीय (जो मूलतः अ-सांप्रदायिक है) 'धर्म-निरपेक्षता' की अवधारणा को पचा नहीं पता। राजनीतिक शक्तियां इसीका फयदा उठाती हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि 'सांप्रदायिकता' और 'धर्मनिरपेक्षता' दोनों की प्रसव-भूमि शिक्षित मध्यवर्ग ही है, जिसका तेजी से विस्तार हो रहा है और इसलिए हमें भारत में सांप्रदायिकता एक बड़ी समस्या नजर आने लगी है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
लोकप्रिय पोस्ट
-
विवेकी राय हिन्दी ललित निबन्ध परम्परा के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. इस विधा में उनकी गिनती आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदि, विद्यानिव...
-
मई का मध्याह्न। चिलचिलाती हुई धूप और तेज लू की लपटों के बीच किसी आम के पेड़ के नीचे बोरे बिछा ए टिकोरों की आस में पूरी दुपहिया-तिझरिय...
-
कुबेरनाथ राय के लेखन का तीसरा विषय-क्षेत्र है µ रामकथा इसमें वे खूब रमे हैं। उन्होंने इस विषय पर तीन स्वतन्त्र किताबें ही लिख डाली हैं। ‘...
-
वंदे बोधमयं नित्यम् : आचार्य वासुदेवशरण अग्रवाल आधुनिकता और नवजागरण के संदर्भ में स्वचेतनता , वैचरिकता और इतिहास-दृष्टि का उल्लेख और सं...
-
गांव की ईट की इन भट्ठियों में रहकर उनकी तपन सहकर और फिर भी इन घरों के प्रति अथाह राग रखकर हम डार्विन के श्रेष्ठतम की उत्तर जीविता को निरंतर ...
-
आचार्य वासुदेवशरण अग्रवाल विभिन्न ज्ञानानुशासनों के सम्पुंजित विग्रह हैं। भारतीय धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, इतिहास तथा भू-तत्व और लोक-विद्या...
-
वासुदेव शरण अग्रवाल मेरे प्रिय लेखकों में एक हैं। भारतीय संस्कृति की मेरी थोड़ी बहुत समझ जिन लेखकों को पढ़कर बनी है, वे उनमें से...
-
सनातन नदी : अनाम धीवर कुबेरनाथ राय भगवान् बुद्ध जब तरुण थे, जब उनकी तरुण प्रज्ञा काम, क्रोध, मोह के प्रति निरन्तर खड्गहस्त थी, त...
-
आर्येतर भारत और गंगातीरी लोक जीवन पर केन्द्रित कुबेरनाथ राय की प्रमुख कृतियाँ ‘निषाद बाँसुरी’ ,‘ मनपवन की नौका’ ‘किरात नदी में चन्द्रमधु’ ...
-
समूचा भारतीय साहित्य मानव-प्रकृति-साहचर्य की उद्बाहु घोषणा करता रहा है — ‘ पश्य देवस्य काव्यं। न ममार न जिर्यति। ’ यह ‘ देवस्यकाव्यं ’ है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें