शनिवार, 21 सितंबर 2013

शब्द



शब्द !
मुझे शब्द चाहिए-
हथौड़े का नहीं 
चोट खाए लोहे का शब्द.

मधुमयी रात में रति-गृह के प्रेमालाप नहीं,
निशीथ के निःशब्द एकांत को
चीरने वाले झींगुर के निर्मम शब्द,

दो पाटों के बीच बहाने वाली
नदी की मधुर कल-कल नहीं,
निःसीम गरलगर्भ सागर की
गर्जना के भीषण शब्द,

जीवन के उल्लास
मरण की शांति
के बीच तडफडाती
उत्तेजना के शब्द.

मुझे चाहिए –
अघाकर डकारते कंठ का स्वर नहीं,
भूख से कुलबुलाती अंतड़ियों के शब्द ,
बाजरे के भात के बुद-बुदाते शब्द नहीं,
उसकी ओर उम्मीद से ताकती
भूखी निगाहों के शब्द.

मुझे चाहिए -
तबे पर पलटी जाती
पहली रोटी के शब्द,
चिमटे का शब्द,
खालि बटलोई में
चलते हुए कलछुल के शब्द.

शब्द ! शब्द !!
मुझे शब्द चाहिए -
नहीं चाहिए प्राणवाक्षर ,
नहीं चाहिए सतश्री अकाल,
नहीं चाहिए अल्ला हो अकबर,

मुझे चाहिए ,
इन ध्वनिओं की ओट में दबे शब्द
अजन्मी बच्ची के ,
जलती रही जो
हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में
जन्म-जन्मान्तर ,

शब्द,
मुझे सिर्फ शब्द वह चाहिए
जिसमें
मैं होऊं तुम होवो
हमारी बातें हों
बिना किसी ‘वह’ की गुंजाईश के.

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