साहित्य-संवाद
साहित्य समय और संस्कृति
बुधवार, 1 अगस्त 2012
छोटी मछली
अच्छा
लगता
था
थूकना
बचपन
में
तालाब
के
पानी
में
मछलियों
का
लपकना
निगल
जाना
उसे
उछल
कर
झटके
से
.
नहीं
जनता
था
तब
कितना
मुश्किल
है
निगल
जाना
किसी
और
की
थूक
झपटकर
बड़ी
मछली
के
डर
से
छोटी
मछली
का
.
सरहदें
परिंदा कोई तुम्हारे
आँगन
का
नहीं
मार सकता पर
मेरे
आँगन
में
,
मूंद
दीं बिलें चीटीयों
की
कायम
करती
थी
जो
बेवजह
आवाजाही
तुम्हारे
घर
से
मेरे
घर की
,
रोशनदानों
पर
जड़
दिए मोटे
शीशे
न
आ
सके
नापाक हवा
तुम्हारे दरख्तों
की
मुझ
तक
मेरे
घर
मेरी
आद
-
औलादों
तक
,
फिर, कैसे
रोया
मेरा
नवजात
बच्चा
तुम्हारे
बच्चे
की
आवाज
में
?
अरे
!
अब
हँस
रहा
तुम्हारा
बच्चा
मेरे
बच्चे
की
तरह
.
क्या
महफूज़
हैं
,
सच
-
मुच
हमारी
-
तुम्हारी
सरहदें
!
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